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कार्य पूरे करे

उत्पादकता समय के अनुशासन पर निर्भर है; जोकि काम करनेका स्वस्थ माहोल बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है| इससे आपकी कार्यक्षमता बढती है और नई प्राप्त असरकारकता के साथ आपके आत्म सम्मान को बढ़ावा मिलता है| यह ज्यादातर खुद को अनुशासन में रखने के बारे में है, उदाहरणतः – एक ज़िम्मेदार चयन करना और एक बनावटी योजना में बने रहना| कोई भी जटिल समस्याको आसानी से सुलझाया जा सकता है अगर उसे छोटे हिस्सों में बाँटकर सहज प्रबंधनीय कार्यों या स्तरों में परिवर्तित किया जाय|

आप खुद ही देख लीजिये :-

कदम १ : एक व्यवस्था :

     आपके लिए जोशीले ढंग से क्या काम करता है उसे खोजो
  • यह दुनिया प्रति क्षण बदलती है और उसके अनुरूप बनना आधा काम करने बराबर है| इसीलिए एक व्यवस्था ऐसी चाहिए जो आपकी क्षमता या काम करने की कुशलता को आपसे छीने बिना, जोशीले ढंग से दुनिया के साथ अनुकूलन करे|
  • अच्छी आदतों और रस्मों का निर्माण करें| हमेशा व्यायाम के साथ पूर्ण शक्तिशाली रूप से अपनी सुबह की शुरुआत करें नाकि नीरसता के साथ बेजान तरीके से| एक अच्छी शुरुआत बेहद जरुरी होती है| पुरे दिन अच्छा और स्वास्थ्य वर्धक खाएं और आरोग्य को बनाए रखें| यह दिखने में छोटी लगाने वाली बातें ही अंततः आपका ध्यान अधिक केन्द्रित रखती हैं और आपको उपजाऊ बनाती है|
  • अपनी ताकतों और कमजोरियों को भलीभांति जानते हुए दिन की शुरुआत कीजिए| इससे आपको अंदाज़ रहेगा की कौनसे प्रकार का कार्य आप दबाव में रहेते हुए भी संभाल सकते हो और किस प्रकार का कार्य आपको दिशाहीन और कमजोर बना सकता है|
  • पता लगाइए की आप काम करते समय कब सबसे ज्यादा चुस्त महसूस करते हैं, और सबसे नीरस व कठिन कार्य उसी समय कीजिए – ताकि आप सबसे ज्यादा केन्द्रित होंगे| और जब आप बहुत थके हुए हो तब आप अपने पसंदीदा कार्य करें जिससे आपको अपने मिज़ाज के परिवर्तनों को संभालने में मदद मिलेगी, जिससे आपकी उत्पादकता महत्तम हो जाएगी|
  • प्रयत्न करके अपने कार्य को छोटे विभागों में बाँट कर आत्मसात कीजिए और उसके मुताबिक आगे बढ़ें; बड़ी मात्रा में काम का बोझ उठाकर थकने से यह बेहतर होगा| आप इस उपजाऊ आचरण को सीख सकते हैं और इसका प्रयोग कर सकते हैं| डॉ.स्नेह देसाई के पुस्तक ‘धी लास्ट लैप’ में आपको एक अनुभूत उपकरण समूह (किट) [एक साल तक प्रयोग करने के लिए] दिया जाता है जो आपको अपने ध्येय को क्रमशः, सरलता से और बिना कष्ट के प्राप्त करा सकता है|
  • अपने कर्मचरियों के और अधीनस्थ साथियों के साथ तंदुरस्त आन्तरिक सम्बन्ध बनाना सीखिए| ‘ना’ कहेना सीखो और आप अपनेआप ही उत्तम और जवाबदेय अवस्था से काम कर पाओगे और हमेशा से ज्यादा काम करवा पाओगे|
  • आपके काम में दखल देने वाले या आपको जिससे तनाव महसूस होता है उसके पास ना जाएँ या उस पर प्रयत्न पूर्वक काबू पाकर उसका सामना करें| उदाहरणतः अंतिम तिथियाँ| या तो सीधे ही उनका सामना करें या हररोज थोडा थोडा कम करते रहें, जिससे अंतिम समय का दबाव दूर रख सकेंगे| अगर आप सही में तनाव मुक्त रहेना चाहते हो तो डॉ.स्नेह के ४-दिवसीय ‘Ultimate life camp’ में जुड़ें, जहाँ आप हमेशा तनाव मुक्त रहेने की तरकीबें और रहस्य सीख सकते हैं|

कदम २: समय निकालें :

     समय का प्रबंध
  • अपने आप को सामाजिक माध्यमों का विष हरण करने की समृध्धि दें| अपने स्मार्ट फोन को दूर रखें या वाय-फ़ाय को पूरी तरह से बंद रखें| अगर आपको कंप्यूटर आकर्षित करते हैं तो अपनी टिप्पणियाँ हाथ से किसी कापी में लिखें कंप्यूटर पर नहीं| अगर आपके काम में इन्टरनेट से जुड़ना जरुरी नहीं है तो इन्टरनेट बंद रखें|
  • ५० मिनिट या १ घंटे के काम के बाद खुदको १० या २० मिनिट का विराम दें, उससे ज्यादा नहीं! अपने तनाव के स्तर को काबू में रखने के लिए विराम लेना जरुरी है, पर जरुरत से ज्यादा विराम लेने से समय और शक्ति दोनों का व्यय होगा| खुद पर संयम रखने के लिए अलार्म रखें|
  • उन छोटे-छोटे व नीरस कार्यों को खोजिये जो आपके समय को अल्प मात्रा में कई बार खा जाते हैं, लेकिन जब इकठ्ठा किये जाएँ तो मात्रा काफी बढ़ जाती है| इन कामों पर काबू रखें और बचे हुए समय का असरकारक तरह से उपयोग करें| एक दिनचर्या बनाओ| उदाहरणतः, कभी भी और बार-बार अपने इ-मेल (निजी व व्यावहारिक) देखने के बजाय उनके के लिए एक समय नियुक्त कीजिये|
  • तकनीक का अच्छा इस्तमाल करें| ट्विटर, या फेसबुक के बजाय, स्मरण पत्र और करने वाले कामों की सूची रखने के लिए अपने स्मार्ट फोन का उपयोग करें| ‘गूगल कीप’ और ‘गूगल कैलंडर’ उत्तम कार्य कर हैं| इस तरह महत्त्व के कार्यों को याद करने का समय बचाया जा सकता है क्योंकि आप को याद करवाने का काम तो आपका फोन ही कर देता है|
  • आगे से आयोजन करना सीखें| नहाने इत्यादि में लगने वाले समय को अपने दिन का पूर्व आयोजन करने के लिए एक अवसर मानो|

कदम ३: समीक्षा:

     ध्येय और उद्देश्य का फर्क पहचाने
  • कार्य करने में एक महत्त्व का कदम है की आप ध्येय और उद्देश्य में का फर्क समझ सकें| उद्देश्य लम्बे समय का होता है जबकि ध्येय निश्चित समय से बंधा होता है| अपने ध्येय पर केन्द्रित रहिये और आपको ज्यादा प्राप्त कर सकोगे|
  • हर दो-चार हफ़्तों के बाद अपनी व्यवस्था की समीक्षा करें और उसे पुनः प्रस्थापित करें|
  • अपने कार्यों की प्रथमता को जानकर उन जरुरी कार्यों को प्राधान्य दें जिन्हें तुरंत आपके ध्यान की आवश्यकता है और जिनके परिणाम त्वरित नज़र आने वाले हों|
  • जो काम आप पूरा कर सकते हो और उस के लिए जो समय आप लेते हो उस पर ध्यान दीजिए| जरुरत लगे तो खुद पर अधिक नियंत्रण रखने के तरीके अपनाइए|
  • भविष्य पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय वर्तमान पर करें|
  • जो आपको प्रेरित व उत्साहित करें ऐसे हकारात्मक विचारों पर चिंतन कीजिये|
  • दिल और दिमाग खुला रखें और अपने आपसे प्रमाणिक रहते हुए आलोचना का स्वीकार करें|
  • अपने कर्मचारियों का प्रतिभाव जाने और वार्तालाप व समीक्षा कार्यक्रमों का आयोजन करें ताकि बेहतर कैसे हो सकते हैं यह जान सकें|

साथ ले जाएँ: यह कोई अस्थाई व्यवस्था नहीं है, इन कदमें को लगातार मरम्मत की जरुरत रहेती है| आप जितने ज्यादा इमानदार रहेंगे आपकी उत्पादन क्षमता उतनी बढ़ेगी| हर व्यक्ति अलग वातावरण में अलग तरह से काम करता है| अतः, उपरोक्त व्यवस्थाओं पर मनन कीजिए और आपकी जरूरतों व पसंद के अनुसार चुनिए| एक कार्य प्रणाली बनाईए और उससे चिपके रहीए और जरुरत के हिसाब से उस में बदलाव करते रहीए|

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